एक ज़रा सी ज़िन्दगी

एक ज़रा सी ज़िन्दगी मांग के आये थे
एक ज़रा सी रोशनी थाम के चले थे
दो पल चल के, दो पल रुक के
धीरे से आगे बढ़ रहे थे हम
पलकों में ख्वाब अभी जवान हैं 
पैरों में पंख जैसे हो निकल आये
अब जब हम इस मकाम पे हैं
तो मुढ़ के देख रहे हैं
जो बीत गया वोह बचपन था
जो आ रहा वोह भी जीवन हैं 
रात गयी और उम्र भी
जो रेहे  गया वोह बस आज हैं

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